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कविता

औरतें

स्नेहमयी चौधरी


सारी औरतों ने
अपने-अपने घरों के दरवाजे़
तोड़ दिए हैं
पता नहीं
वे सबकी सब गलियों में भटक रही हैं
या
पक्की-चौड़ी सड़कों पर दौड़ रही हैं
या
चौराहों के चक्कर काट-काट कर
जहाँ से चली थीं
वहीं पहुँच रही हैं तितलियाँ ।


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हिंदी समय में स्नेहमयी चौधरी की रचनाएँ