सारी औरतों ने अपने-अपने घरों के दरवाजे़ तोड़ दिए हैं पता नहीं वे सबकी सब गलियों में भटक रही हैं या पक्की-चौड़ी सड़कों पर दौड़ रही हैं या चौराहों के चक्कर काट-काट कर जहाँ से चली थीं वहीं पहुँच रही हैं तितलियाँ ।
हिंदी समय में स्नेहमयी चौधरी की रचनाएँ